9.30 am
अनचाही राहों में
बस तेरी बाहों में
चले हम जा रहे
उम्मीद लिए निगाहों में
कुछ है शिकवा
थोडी हैं शिकायतें
पर अब चाह कर भी नहीं रुक सकते
चाहे कितनी हो हिदायतें
सोच कर की क्या बीत चुकी है
शायद कहीं हम ठहर जाएँ
पर फिर आगे बढ ही गए
चाहे कोई कहर ढाए
जो होना था वोह हो ही गया
क्या करें अब यूँ सर झुकाए
शायद इसी लम्हे को याद कर के
कल गम में भी हम मुस्कुराएँ
:) ??
4 comments:
"शायद इसी लम्हे को याद कर के
कल गम में भी हम मुस्कुराएँ"
Hindi sound so much more beautiful than the English ones. I wanna say it out loud again and again.
Soooooo beautiful. :)
Hindi poems, I mean.
write more... write more... how... how very... how very poetic :>
@Srishti: Thanks..
@Nitin: :D
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